रविवार, 19 जुलाई 2009

फिर खुदा ही मालिक है.........................................?




फिर खुदा ही मालिक है.......................?
दादा को राजनीती के कुछ सदगुण, पता है पर यह जिस दल की राजनितिक प्रतिबद्धता को स्वीकार करते है वहां सदगुण की अब कोई जरुरत नहीं रही वहां एक से एक नकारे , इकठ्ठा है जहाँ इन्होने निहायत सीधे सादे पुत्र विजय को डालकर शायद बड़ी गलती की उन्हें अपने को अलग नहीं करना चाहिए था क्योंकि पूर्वांचल के लिए समाजवादी पार्टी के लिए "नए तेज तर्रआर किसी यादव नेता के लिए कोई जगह नहीं है " एक तरह के विशेष कार्य कर्ता उनकी पसंद है और शायद यही उनकी बड़ी कमजोरी है !
इस पार्टी में गुंडे लंठ और विवेकहीन कार्य कर्तायों की भर्ती और संसद और विधान सभा में उनकी उपस्थिति ही समाजवाद को ठेंगा दिखाती है !
और इसी तरह के आदमी का ये चयन करते है . .....................................................
फिर खुदा ही मालिक है..................................................................................?